Wednesday 16 December 2015

यहां पर है दुनिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग -

भोपाल : यहां पर है दुनिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग, पांडवों ने करवाई थी स्थापना -
22 फीट ऊंचा यह शिवलिंग दक्षिण भारत के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर के शिवलिंग से भी ऊंचा है। जनकथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था।

भोपाल के पास है ये मंदिर -
भोजेश्वर नाम से पहचाने जाने वाला यह मंदिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर है। रायसेन जिले के भोजपुर में स्थित इस मंदिर में काफी आसानी से पहुंचा जा सकता है। भोपाल से होशंगाबाद की तरफ जाने वाले नेशनल हाईवे नंबर 7 में 11 मील से अंदर की ओर भोजपुर के लिए मुख्य रास्ता है। बाहर से आने वाले पर्यटक आसानी से टैक्सी बुक कर यहां पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही आप अपने वाहन से भी इस मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं।

पांडवों ने बनवाया था ये मंदिर - 
इस मंदिर के निर्माण में दो बातें सामने आती हैं। जनकथाओं के अनुसार वनवास के समय इस शिव मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। भीम घुटनों के बल पर बैठकर इस शिवलिंग पर फूल चढाते थे। इसके साथ ही इस मंदिर के पास ही बेतवा नदी है। जहां पर कुंती द्वारा कर्ण को छोड़ने की जनकथाएं भी प्रचलित हैं। वहीँ, पुरातत्व विभाग इन जनकथाओं पर अपनी मुहर नहीं लगाता है। विभाग के अनुसार इस मंदिर का निर्माण मध्यभारत के परमार वंशीय राजा भोजदेव द्वारा करवाया 11वीं सदी में करवाया गया था। राजा भोजदेव कला, स्थापत्य और विद्या के महान संरक्षक थे। इन्होने ग्यारह से अधिक पुस्तकें भी लिखी थी।

कई देवी देवताओं की है मूर्तियां - 
मंदिर के गर्भगृह की अधूरी छत 40 फीट ऊंचे विशालकाय चार स्तंभों पर आधारित है। मंदिर से प्रवेश के लिए पश्चिम दिशा में सीढ़ियां हैं। गर्भगृह के दरवाजों के दोनों ओर नदी देवी गंगा और यमुना की मूर्तियां लगी हुईं हैं। इसके साथ ही गर्भगृह के विशाल शीर्ष स्तंभ पर उमा-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मा-सावित्री और सीता-राम की मूर्तियां स्थापित हैं। सामने की दीवार के अलावा बाकी सभी तीन दीवारों में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं हैं। मंदिर के बाहरी दीवार पर यक्षों की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

खंडित हो चुका है शिवलिंग -
17 फीट उंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर की ऊंचाई 106 फीट और चौड़ाई 77 फीट है। 22 फीट ऊंचा यह शिवलिंग छत का पत्थर गिरने से यह दो भागों में टूट गया था। इसे बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा जोड़ दिया गया है।

विश्व में अनोखी है इस मंदिर की निर्माणकला -
मंदिर के पीछे बने मिटटी के रपटे से मंदिर के निर्माण के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। इस रपटे की मदद से 35 फुट लंबे और 70 टन वजनी पत्थरों को मंदिर के शीर्ष तक पहुंचाया जाता था। मंदिर के पास ही जमीन पर कुछ निशान देखे जा सकते हैं। यहां पर पत्थरों को काट कर तराशा जाता था। फिर इन्हें लकड़ी के गोल गठ्ठों के द्वारा इन पत्थरों को लुढ़का कर रपटे के ऊपर तक पहुंचाया जाता था।


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