Saturday 2 May 2015

हिन्दू धर्म की 15 कहानियां, जानना जरूरी - भाग 3

हिन्दू धर्म की 15 कहानियां, जानना जरूरी - भाग 2 से आगे.... 
8. राजा हरीशचन्द्र : सतयुग के राजा हरीशचन्द्र की कहानी को कौन नहीं जानता? लगभग सभी जानते हैं कि कैसे ऋषि विश्‍वामित्र और ब्रह्मा ने उनकी सत्यप्रियता की परीक्षा लेने के लिए उनका जीवन बर्बाद कर दिया था, लेकिन उन्होंने सत्य का साथ फिर भी नहीं छोड़ा। उनकी कहानी बड़ी ही दर्दनाक कहानी है। भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कथा मानी जाती है सत्यवादी राजा हरीशचन्द्र की कथा।
हरीशचन्द्र सच बोलने, दान देने और वचन पालन के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी सत्यता की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा और ‍विश्‍वामित्र ने एक योजना बनाई और फिर राजा हरीशचन्द्र का जीवन बदल गया। एक रात उन्होंने सपना देखा कि उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को अपना संपूर्ण राजपाट दान कर दिया है। सुबह हुई तभी उनके द्वार पर विश्वामित्र साधु वेश में आ धमके। राजा हरीशचन्द्र ने उन्हें प्रणाम कर पूछा- 'मेरे लिए क्या आज्ञा है, मुनिवर?'
मुनि के भेष में विश्‍वामित्र ने कहा कि मैं जो मांगूगा, वो तुम दे सकोगे? तब राजा ने विश्‍वामित्र को पहचानकर कहा कि मैं अपना सबकुछ पहले से ही आपको दे चुका हूं मुनिवर अब क्या दूं? विश्‍वामित्र को आश्चर्य हुआ। विश्‍वामित्र ने कहा कि मुझे खुशी है, तुम अपने वचन के पक्के हो। चलो, तुम्हारा साम्राज्य अब मेरा हुआ किंतु अब बताओ दक्षिणा में तुम क्या दोगे?
राजा सोच में पड़ गए। वे जानते थे कि दक्षिणा के बिना दान पूरा नहीं होता। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा- 'मुनिवर, अब तो हमारे पास केवल हमारे शरीर बचे हैं। काशी नगरी के बाजार में हम अपने को बेचेंगे। जो मूल्य मिलेगा, वही आपकी दक्षिणा होगी।' राजा ने अपने पुत्र और पत्नी सहित खुद को काशी की मंडी में बेच दिया और उस रकम को विश्वामित्र को ‍दक्षिणा में दे दिया। बस यहीं से उनके बुरे दिन शुरू हो गए। यह कहानी यहीं तक लिखी, आगे आप ढूंढकर पढ़ें या फिल्म देखें।

9. ययाति की कहानी : ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबल-विक्रमशाली पुत्र हुए।
अत्रि से उत्पन्न चंद्रवंशियों में पुरुरवा-ऐल के बाद सबसे चर्चित कहानी ययाति और उसने पुत्रों की है। ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु। उनके इन पांचों पुत्रों और उनके कुल के लोगों ने मिलकर लगभग संपूर्ण एशिया पर राज किया था। ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है।
ययाति बहुत ही भोग-विलासी राजा था। जब भी उसको यमराज लेने आते तो वह कह देता नहीं अभी तो बहुत काम बचे हैं। अभी तो कुछ देखा ही नहीं। 

10. वशिष्ठ-विश्वामित्र की लड़ाई : गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के मध्य प्रतिष्ठा की लड़ाई चलती रहती थी। इस लड़ाई के चलते ही 5 हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के पूर्व एक और महासंग्राम हुआ था जिसे 'दशराज युद्ध' के नाम से जाना जाता। इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है। यह रामायण काल की बात है
महाभारत युद्ध के पहले भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दशराज युद्ध हुआ था। इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान है। ऋग्वेद के 7वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। इस युद्ध से यह पता चलता है कि आर्यों के कितने कुल या कबीले थे और उनकी सत्ता धरती पर कहां तक फैली थी। इतिहासकारों के अनुसार यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास हुआ था।
ब्रह्मा से भृगु, भृगु से वारिणी भृगु, वारिणी भृगु से बाधृश्य, शुनक, शुक्राचार्य (उशना या काव्या), बाधूल, सांनग और च्यवन का जन्म हुआ। शुनक से शौनक, शुक्राचार्य से त्वष्टा का जन्म हुआ। त्वष्टा से विश्वरूप और विश्‍वकर्मा। विश्वकर्मा से मनु, मय, त्वष्टा, शिल्लपी और देवज्ञ का जन्म हुआ। दशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे। 



राजा सगर और भगीरथ : इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की 2 रानियां थीं- केशिनी और सुमति। जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को 60 हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा। वंशधर अर्थात जिससे आगे वंश चलेगा।
बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। वह सिर्फ एक बेजान पिंड था। राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में 60 हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में 60 हजार पुत्र प्राप्त होंगे।' 
राजा सगर ने इस आकाशवाणी को सुनकर इसे विधाता का विधान मानकर वैसा ही सुरक्षित रख लिया, जैसा कहा गया था। समय आने पर उन मटकों से 60 हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। 
राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोलीं, राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए। 
भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के 60 हजार पुत्र कपिल मुनि के तेज से भस्म हो जाने के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे। अपने पूर्वजों की शांति के लिए ही भगीरथ ने घोर तप किया और गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हुए। पूर्वजों की भस्म के गंगा के पवित्र जल में डूबते ही वे सब शांति को प्राप्त हुए। राजा भगीरथ के कठिन प्रयासों और तपस्या से ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थी, इसे ही 'गंगावतरण' की कथा कहते हैं। सगर और भगीरथ से जुड़ी अनेक और भी कथाएं हैं।
                                                    हिन्दू धर्म की 15 कहानियां, जानना जरूरी - भाग 4

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