Saturday 16 May 2015

दायित्वों का बोध कराते हैं शनिदेव -

श्री शनिदेव दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। वे न्यायप्रिय ग्रह हैं, जीवों को उनके कर्मो के आधार पर फल देते हैं। यदि उनकी अनुकंपा पानी हो तो अपना कर्म सुधारें। आपका जीवन अपने आप सुधर जाएगा।

शनि जयंती पर सुख और समृद्धि चाहते हों तो श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। श्री शनिदेव को इस दिन किया गया तैलाभिषेक बहुत ही फलदायी होता है। इससे शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होकर शनिभक्तों को ग्रह जनित बाधाओं से छुटकारा दिलाते हैं। इस दिन जो भी शनिदेव की पवित्र मन से पूजा-पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन गरीब, असहाय व जरूरतमंद लोगों की सेवा व सहायता करने वाले लोगों पर भी श्रीशनिदेव की विशेष अनुकंपा होती है। श्री शनिदेव अपने भक्तों में किसी प्रकार का खोट देखना पसंद नहीं करते। यदि भक्त से कोई खोट होता है तो उसे तुरंत दंड देकर उसकी भूल सुधारने का संकेत देते हैं।  

शनि जयंती 1 जून को है। इस दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी सभी बाधाओं से मुक्ति का यह दुर्लभ अवसर है। यदि निश्चल भाव से शनिदेव का नाम ही ले लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं, जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला सुनाते हैं।

याद रहे, शनि एक न्यायप्रिय ग्रह हैं। उनकी अनुकंपा पानी हो तो अपना कर्म सुधारें, आपका जीवन अपने आप सुधर जायेगा। शनिदेव दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। वे हमारे कर्मो के आधार पर फल देते हैं। वे जीवों को उनके कर्मफलों का भुगतान करवाते हैं। इतना ही नहीं, श्री शनिदेव मनुष्य को उसके कर्म बंधनों से मुक्त कर उसका जीवन सार्थक करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। शनिदेव- सौरमंडल के प्रमुख ग्रह हैं। गोचर में इनके प्रभावों को देखते हुए इन्हें भाग्य विधाता भी कहा जाता है। जन्म कुंडली के बारह भावों में श्रीशनिदेव की स्थिति संबंधित व्यक्ति द्वारा किए गए शुभाशुभ कर्मो के अनुरूप ही होती है। यदि व्यक्ति के कर्म खोटे होते हैं तो उनके फल श्रीशनिदेव उनके अनुरूप ही प्रदान करते हैं। इसके लिए उन्हें लांक्षित करना उचित नहीं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव कश्यप वंश की परंपरा में भगवान सूर्य की भार्या छाया के पुत्र हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार शनि को काश्यपेय नाम से इसलिए संबोधित किया जाता है कि श्री शनिदेव की उत्पत्ति महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में संपन्न काश्यपेय यज्ञ से हुई थी। किंतु अधिकाधिक विद्वानों के अनुसार श्रीशनिदेव की काश्यपेय संज्ञा कश्यप पुत्र सूर्य का पुत्र होने की वजह से दी गई है।

मरीचितनय कश्यप ने दाक्षायणी के गर्भ से सूर्यदेव को उत्पन्न किया और त्वष्टा प्रजापति की कन्या संज्ञा सूर्य की पत्नी हुई। वह सूर्य मंडल का तेज और आदित्य का उष्णरूप शरीर से ग्रहण तो करती थी, परंतु उसका शरीर धीरे-धीरे तेजहीन व कान्ति हीन होने लगा। संज्ञा की ऐसी हालत देखकर उसके ससुर महर्षि कश्यप को डर लगने लगा कि कहीं संज्ञा गर्भ में स्थित शिशु की मृत्यु न हो जाए। तीक्ष्ण किरणधारी वह मार्तण्ड, जिनकी किरणों द्वारा त्रैलोक्य अति तापित किया जाता है, सूर्य का यह तेज उनकी पत्नी संज्ञा के लिए असह्य हो गया। सूर्यदेव ने संज्ञा के गर्भ से तीन संतानें पैदा की, दो पुत्र और एक कन्या। सबसे बड़े पुत्र वैवस्वत मुनि तथा छोटे पुत्र यमराज थे। कन्या का नाम यमुना था। इसके बाद जब संज्ञा सूर्य के तेजोमय रूप को सहने में असमर्थ हो गई, तब उसने अपने से ही मायामयी सवर्णा छाया का निर्माण किया।

शनि जयंती पर यूं करें शनिदेव को प्रसन्न -
- श्री शनिदेव का व्रत रखें। श्रद्धानुसार शनि मंत्रों का जाप करें। 
- शनिदेव को तेल अर्पित करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
- शनि जयंती के दिन घोड़े की नाल या नाव के पेंदी की कील का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें।
- एक बार पहनकर अपना पहना हुआ वस्त्र गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को दान में दें।
- शनिवार के दिन जरूरतमंद या गरीब लोगों के लिए भंडारे की व्यवस्था करें।
- पांच लोहे की वस्तु, अन्न और तेल शनि जयंती के दिन निर्धन व जरूरतमंद व्यक्ति को दान में अवश्य दें।
- कंजकों को दूध का दान देना अनुकूल रहता है।
- श्रद्धानुसार जौ किसी भी गौशाला या कुष्ठ रोगियों को दान में दें।
- सरसों की खली गौशाला में दान दें। 
- अपने गले में ठोस लोहे की गोली नीले रंग के धागे में डालकर धारण करना अनुकूल रहेगा।
- शनि जयंती के दिन भोजन में तिल के लड्डू, उड़द की दाल, मीठी पूड़ी बनाकर श्री शनिदेव को भोग लगाएं। गाय, कुत्ते, कौओं को खिलाएं और प्रसाद के रूप में खुद भी ग्रहण करें।
- शनि जयंती के दिन 21 मुट्ठी उड़द नीले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से उसार कर बहते पानी में प्रवाह कर दें।
- लकड़ी के कच्चे कोयले शनि जयंती के दिन श्मशान में दान में दें।

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