Tuesday 28 April 2015

कांग्रेस को बेनकाब कर देगा नेताजी का मामला: संघ -

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 'गायब' होने से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग जोर पकड़ने के साथ ही आरएसएस ने अपने मुखपत्र पांचजन्य में नेताजी के रहस्यों पर कवर स्टोरी छापी है। रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने दो दशकों तक तक बोस परिवार की जासूसी की। साथ ही, इस साप्ताहिक अखबार के संपादकीय में इस मसले पर नेहरू सरकार की खिंचाई भी की गई है। 

इसमें कहा गया गया है कि चंद फाइलों से शुरू हुई ऐतिहासिक कलंक कथाओं की यह सीरीज कांग्रेस के अतीत में आजादी से पहले तक जाएगी। संपादकीय के मुताबिक, 'एक अंग्रेज की सोच से जन्मी, अंग्रेजी राज के हित पोषण के लिए अपने तौर पर काम करती रही पार्टी के इतिहास की खिड़की इस अंक के जरिए खुलती है। बोस परिवार की त्रासदी और स्वतंत्रता प्राप्ति का श्रेय लेने वालों के इतिहास का एक टुकड़ा आपके सामने है। पढ़िए, विचार करिए और अपनी राय खुद बनाइए।' 


बोस पर कई किताबें छापने वाले और नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की लड़ाई लड़ने वाले अनुज धर ने बताया, 'मुझे नहीं लगता कि भारत में इससे पहले कभी नेहरू की इतनी आलोचना हुई है। संघ एक राजनीतिक इकाई नहीं है और वह हमेशा राष्ट्रीय सरोकारों के लिए खड़ा रहा है। उसने नेताजी को काफी ऊंचा स्थान दिया है, लिहाजा मुझे उम्मीद है कि संगठन राष्ट्रीय हित में बीजेपी के साथ इस मसले पर काम करेगा।' 

बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने कहा, 'हम सभी सच जानना चाहते हैं। हमारी कोशिश किसी की इस बात के लिए निंदा करने की नहीं है कि उन्होंने सुभाष चंद्र बोस या बोस फैमिली के साथ क्या किया। हमारा मकसद यह जानने का है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े नायकों में से एक के साथ क्या हुआ।' 
उन्होंने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि उनका परिवार नेताजी की गुमशुदगी की जांच जूडिशल कमीशन से कराने और फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग पर कायम है। इस सिलसिले में नेताजी के परिवार के लोग 17 मई को प्रधानमंत्री से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा, 'हमें आशंका है कि इससे जुड़ी कुछ अहम फाइलें नष्ट हो गई होंगी और काफी कम चीजें ही सामने आ सकेंगी।'


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क्या इनकी जाँच नहीं होनी चाहिए -

क्या इनकी जाँच नहीं होनी चाहिए.....
१- रानी लक्ष्मी बाई के मौत के पीछे सिंधिया परिवार का कितना हाथ था ?
२- चन्द्र शेखर आज़ाद की मृत्यु नेहरू के घर पर गरमा गरम बहस के कुछ घंटे बाद ही क्यों हो जाती है ??
३- भगत सिंह के पहचान में मुख्य भूमिका निभाने वाला शोभा सिंह से ऐसा कांग्रेसियों का कौन सा प्रेम है जो उसके नाम पर दिल्ली में सरकारी इमारतों का नाम रखवा रही थी ?
४-नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही?
५- लोर्ड माउंट बेटन की बीबी से नेहरू के ऐसे कौन से रिश्ते थे जिस कारण वह अंग्रेजो की हर बात मान लेते था और भारत माता के दो टुकड़े करने के लिए राज़ी हो गया ?
६- सरदार पटेल जैसे महान नेता को नेपथ्य में धकेलने में नेहरू का कितना हाथ था ??
७- कश्मीर के मुद्दे को जान बुझकर अपने कश्मीरी रिश्तेदारों के कारण लटकाकर रखने में नेहरू की कितनी भूमिका थी?
८- नेहरु के समय जनसंघ के महान नेता श्यामा प्रसाद के मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही??
९-लाल बहादुर शास्त्री के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान था ?
१०- जनसंघ के महान विचारक और प्रसिद्द दार्शनिक पंडित दीन दयाल उपाध्याय एवं श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत में इंदिरा गांधी एवं कांग्रेस की क्या भूमिका थी ?
११- संजय गांधी के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान रहा ??
१२- सोनिया और माधव राव में ऐसे कौन से सम्बन्ध थे जो की शादी के बाद भी एक ही गाडी में आधी रात को दारु पीकर अकेले दिल्ली में घुमते रहते थे ?
१३- इंदिरा गांधी के गोली मारे जाने के बाद सोनिया गांधी द्वारा उन्हें अस्पताल में ले जाने में की गयी देरी जान बूझकर थी या संयोग था, इसकी जांच क्यों न की जाय ??
१४-भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य अभियुक्त एंडरसन को देश से भगाने में गांधी परिवार का क्या योगदान रहा??
१५- 1984 में दंगाईयो को भड़का कर लाखों सिक्ख भाइयो को मरवाने वाला कौन है?
१६- माधव राव ऐसा कौन सा राज़ जानते थे जिसके कारण उनकी असामयिक मौत हो गयी ?
१७- राजेश पायलेट की असामयिक मृत्यु के पीछे किसका हाथ हैं ?
१८- क्वात्रोची के बंद खातो को चुपके से बिना देश को बताये चालू कर देने के पीछे किसका हाथ था ?
१९- रोबेर्ट वाड्रा के परिवार वालो के रहस्यमय मौत की जिम्मेवारी किस पर है ??
२०- सुल्तानपुर के गेस्ट हाउस में रात को शराब पीकर अपने अँगरेज़ मित्रो के साथ लड़की के साथ बलात्कार करने वाला कौन है ?
२१- राहुल गांधी किस नियम के अंतर्गत अवैध होते हुए भी भारत में दोहरी नागरिकता ग्रहण किये हुए है ??
२२- किस हैसियत से सोनिया गाँधी भारतीय वायुसेना के विमानों में सफर करती थी ??
२३- रोबर्ट वाड्रा को किस अधिकार से एअरपोर्ट चेकिंग से छूट मिली हुई हैं ?
२४- सोनिया गाँधी का इलाज सरकारी खजाने से क्यों कराया जाता था , उन्हें ऐसी कौन सी बीमारी है जिसका इलाज भारत में नहीं हो सकता ?
२५- नेताओ के भ्रस्टाचार , घोटाले और काले धन की जांच नहीं कराने में किसका हाथ था और क्या कारण था ?

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क्या आप जानते हैं कि......हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि  हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम "जम्बूदीप" था....?????
परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????

दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!
लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......। आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।
अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।
परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .
इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...

साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।
वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।

राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।
इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।

इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।
ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।


इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है । और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!

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Sunday 26 April 2015

ईश्वर सत्य है + सत्य ही शिव है + शिव है सुंदर है -

भगवान भोले का पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।
पशुपति नाथ मंदिर करीब एक मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। चौकोर मंदिर का अधिकतर हिस्सा लकड़ी का बना है, जिसके चार दरवाजे हैं। इसके ऊपर सिंह की प्रतिकृति भी स्थापित है। मुख्य मंदिर में भैंस के रूप में भगवान शिव के शरीर का अगला हिस्सा भी है। आज नेपाल भूकंप जिस तरह की प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, ठीक उसी तरह साल 2013 में उतराखंड भयानक बाढ़ से जूझ रहा था। लेकिन जिस तरह उत्तराखंड में आई बाढ़ भगवान भोलेनाथ के केदारनाथ धाम को नुकशान नहीं कर पाई थी, ठीक उसी तरह नेपाल में आया भयानक भूकंप भी भोलेनाथ के पशुपतिनाथ मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। भगवान भोलेनाथ के दोनों महत्वपूर्ण धाम इतनी भयानक प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बच गए। हम आपको बता दें कि इन दोनों ही मंदिरों की जड़ें एक ही हैं। 

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
केदारनाथ में जल तांडव में भी ज्योतिलिंग महादेव ज्योति रूप वही अखंड बिराज मान है.

ये ही है भगवान के सत्य का प्रमाण .....

पशुपतिनाथ चतुर्मुखी शिवलिंग चार धामों और चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। भगवान पशुपतिनाथ के चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। हर एक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख दक्षिण की ओर अघोर मुख है, दूसरा पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं, तीसरा उत्तर मुख अर्धनारीश्वर रूप है, चौथा पश्चिमी मुखी को सद्योजात कहा जाता है और पांचवां ऊपरी भाग ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है और यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।

भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर भारत से ही नहीं दुनिया के हर कोने से लोग इस मंदिर को देखने और भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद पशुपतिनाथ के दर्शन करना जरुरी है।

जो सनातनी हिन्दुओने पूर्व मुग़ल लुटेरों के आगे सरणागति स्वीकारी धर्म परिवर्तन किया है उसे आज समज ना चाहिए की हमने क्या खोया है …।
जिसके पास सत्य की पहचान नहीं उसका भविष्य अंधकारमय है।

ईश्वर सत्य है + सत्य ही शिव है + शिव है सुंदर है ......

हर हर महादेव ……
ॐ नम: शिवाय ……

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कट्टर मुस्लिम बादशाह अकबर का घमंड इस मन्दिर में आकर टूटा -

क्या आप जानते हैं कि कट्टर मुस्लिम बादशाह अकबर का घमंड इस मन्दिर में आकर टूटा, यह 1542 से 1605 के मध्य का समय था तब अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानु भक्त माता ज्वाला जी का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। फिर अकबर ध्यानू भक्त के साथ इस मन्दिर में आया और यहाँ बिना घी तेल बाती के जलती नौ जोतें देख कर हैरान हुआ और उन्हें बुझाने के लिए के नहर का पानी इन जोतों पर डलवाया, उसके बाद भी ये जोतें न बुझी ,इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का सवा मण का भारी छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक वैज्ञानिकों को भी समझ नही आई है। अपने छत्र की हालत देख अकबर का घमंड टूटा और वो श्रधा से एक छोटा सोने का छत्र लेकर आया. अकबर पहला बड़ा छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है। मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। मंदिर में अलग-अलग नौ ज्योतियां है जिसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसमें ज्वाला माता का एक शयन कक्ष भी है जिस के बारे में कहा जाता है कि ज्वाला माँ हर रात्रि इस कक्ष में शयन करती हैं और वास्तव में एक आश्चर्यजनक बात देखने को मिलती है कि यहाँ सांयकाल की शयन आरती के बाद माता की सेज सज़ा कर उसके पास एक पानी का लोटा और एक दांतून रखी जाती है और फिर शयन कक्ष के द्वार सुबह तक बंद कर दिए जाते हैं , फिर जब सुबह द्वार खोले जाते हैं तो सेज की चादर पर सिलवटें मिलती हैं और दान्तुन भी की हुई मिलती है. के लिए थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मे एक पानी का एक कुन्द (KUND) है जो देख्नने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे एकदम गरम नही है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।ज्वालाजी में नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। साल के दोनों नवरात्रि यहां पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते है। नवरात्रि में यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है। इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है। नवरात्रि में पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है। कुछ लोग देवी के लिए लाल रंग के ध्वज भी लाते है।मंदिर में आरती के समय अद्भूत नजारा होता है। मंदिर में पांच बार आरती होती है। एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ में की जाती है। दूसरी दोपहर को की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती होती है। इसके पश्चात रात्रि आरती होती है। इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है। उसे फूलो और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है। इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है। जब अवसर मिले यहाँ अवश्य जा कर देखें I

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Wednesday 22 April 2015

केदारनाथ के कपाट 24 अप्रैल को खोल दिए जाएंगे -


हिमालय की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित भगवान शिव के धाम केदारनाथ के कपाट 24 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे. इसके बाद श्रद्धालु वहां बाबा केदार के दर्शन कर सकेंगे.

श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के विशेष कार्याधिकारी वीडी सिंह ने बताया कि महाशिवरात्रि के अवसर पर उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले जाने का मुहूर्त निकाला गया है.

रुद्रप्रयाग जिले में करीब 11,755 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के कपाट पिछले साल दीपावली के बाद भैयादूज के मौके पर 25 अक्टूबर को श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए गए थे. हालांकि वर्ष 2013 में आई प्राकृतिक आपदा से क्षतिग्रस्त हुए केदारनाथ में इन दिनों भारी बर्फ जमने के बाद भी पुनर्निर्माण का कार्य जारी है.

केदारनाथ धाम के अलावा, गढ़वाल हिमालय के चारधाम के नाम से मशहूर चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने का मुहूर्त भी निकाला जा चुका है. बदरीनाथ मंदिर के कपाट इस साल 26 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर खोले जायेंगे.

गढ़वाल हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित चारों धाम, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, सर्दियों में भारी बर्फवारी की वजह से हर साल अक्टूबर-नवंबर में बंद कर दिये जाते हैं जो अप्रैल-मई में दोबारा खोल दिये जाते हैं.

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Tuesday 21 April 2015

बेटी के लिए ऎसे खुलवाएं "सुकन्या समृद्धि खाता", मिलेंगे ये पांच फायदे -


बेटी को बोझ ना समझें और ना ही उसके जन्म पर निराश हों, क्योंकि बिना बेटी के परिवार नाम की संस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। इसी संदेश के साथ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत सुकन्या समृद्धि योजना को लांच किया। यह योजना बेटियों की पढ़ाई और उनकी शादी पर आने वाले खर्च को आसानी से पूरा करने के उद्देश्य से लांच की गई है। इस अनोखी योजना में खाता खुलवाना और इसके फायदे लेना बड़ा ही आसान है। 
  • "सुकन्या समृद्धि खाता" किसी भी डाकघर अथवा अधिकृत बैंक शाखा में खुलवाया जा सकता है। बेटी के जन्म के समय या फिर 10 साल की उम्र तक यह खाता खुलवाया जा सकता है। खाता खुलवाने के समय कम से कम 1000 रूपए और एक वित्त वर्ष में अधिकतम 1.5 लाख रूपए जमा करवाने होते हैं। अगर आपकी बेटी ने योजना शुरू होने के एक साल पहले भी 10 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो, तो ऎसी बेटियों के खाते भी खुलवाए जा सकते हैं। हालांकि एक बेटी के नाम से एक ही खाता खोला जा सकता है।
  • परिवार में अगर दो बालिकाएं हैं, तो दोनों के लिए यह खाता खोला जा सकता है। एक परिवार में दोे से अधिक बालिकाओं का खाता इस योजना में नहीं जुड़वाया जा सकता है। हालांकि जुड़वां बच्चे होने की स्थिति में संबंधित प्रमाण-पत्र प्रस्तुत कर तीसरा खाता भी खुलवाया जा सकता है। बेटी के 10 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले खाते का संचालन अभिभावक ही करेंगे, लेकिन इसके पश्चात स्वयं खाताधारक बालिका भी खाते का संचालन अपने हाथ में ले सकेगी। इस खाते को देशभर में कहीं भी स्थानांतरित करवाया जा सकता है।
  • आपको इस खाते में न्यूनतम राशि खाता खोलने की तिथि से 14 वर्ष तक जमा करानी होगी। अगर खाते में न्यूनतम राशि जमा नहीं करवाई गई, तो न्यूनतम राशि सहित 50 रूपए पैनल्टी स्वरूप वसूल किए जाएंगे। खाता 21 वर्ष पूरे होने के बाद ही परिपक्व होगा।


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अक्षय तृतीया के बारे में यह बातें आप नहीं जानते होंगे

अक्षय तृतीया एक ऐसी शुभ तिथि है जिसमें कोई भी शुभ कार्य हेतु, कोई नयी वस्तु खरीदने हेतु पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
विवाह, गृह-प्रवेश जैसे शुभ कार्य भी बिना पंचांग देखे इस तिथि में किये जा सकते हैं। इस दिन पितृपक्ष में किये गए पिंडदान का अक्षय परिणाम भी मिलता है।
अक्षय तृतीया में पूजा-पाठ और हवन इत्यादि भी अत्याधिक सुखद परिणाम देते हैं। यदि सच्चे मन से प्रभु से जाने-अनजाने में किए गया अपराधों के लिए क्षमा-याचना की जाए तो प्रभु अपने भक्तों को क्षमा कर देते हैं और उन्हें सत्य, धर्म और न्याय की राह में चलने की शक्ति प्रदान करते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन व्रत-पूजा का खरीदारे करें कब -
अक्षय तृतीया सर्वसिद्ध मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है। इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु की आराधना में विलीन होते हैं।स्त्रियाँअपने और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करके श्री विष्णुजी और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। शांत चित्त से उनकी श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती एवं चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ावा करें। इसी दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
साथ ही फल-फूल, बर्तन, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, चावल, नमक, घी, खरबूजा, चीनी, साग, आदि दान करना पुण्यकारी माना जाता है।
अक्षय तृतीया के प्रमुख पौराणिक कथाएं -
एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के काल में जब पांडव वनवास में थे, तबएक दिन श्रीकृष्ण जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार है, ने उन्हें एक अक्षय पात्र उपहार स्वरुप दिया था। यह ऐसा पात्र था जो कभी भी खाली नहीं होता था और जिसके सहारे पांडवों को कभी भी भोजन की चिंता नहीं हुई और मांग करनेपर इस पात्र से असीमित भोजन प्रकट होता था। श्री कृष्ण से संबंधित एक और कथा अक्षय तृतीया के सन्दर्भ में प्रचलित है।
कथानुसार श्रीकृष्ण के बालपन के मित्र सुदामाइसी दिन श्रीकृष्ण के द्वार उनसे अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने गए था। भेंट के रूप में सुदामा के पास केवल एक मुट्ठीभर पोहा ही था। श्रीकृष्ण से मिलने के उपरान्त अपना भेंट उन्हें देने में सुदामा को संकोच हो रहा था किन्तु भगवान कृष्ण ने मुट्ठी भर पोहा सुदामा के हाथ से लिया और बड़े ही चाव से खाया। चूंकि सुदाम श्रीकृष्ण के अतिथि थे, श्रीकृष्ण ने उनका भव्य रूप से आदर-सत्कार किया।
ऐसे सत्कार से सुदामा बहुत ही प्रसन्न हुए किन्तु आर्थिक सहायता के लिए श्रीकृष्ण ने कुछ भी कहना उन्होंने उचित नहीं समझा औरवह बिना कुछ बोले अपने घर के लिए निकल पड़े।
जब सुदामा अपने घर पहुंचें तो दंग रह गए। उनके टूटे-फूटे झोपड़े के स्थान पर एक भव्यमहल था और उनकी गरीब पत्नी और बच्चें नए वस्त्राभूषण से सुसज्जित थे।
सुदामा को यह समझते विलंब ना हुआ कि यह उनके मित्र और विष्णुःअवतार श्रीकृष्ण का ही आशीर्वाद है। यहीं कारण है कि अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति की लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

नौ बातें जो अक्षय तृतीया को बनाते हैं सबसे खास -
अक्षय तृतीया को शास्त्रों में बड़ा ही महत्व दिया गया है। आइये जानें वह नौ बातों जो अक्षय तृतीया के दिन हुए जिसने इस दिन को बनाया है बहुत ही शुभ और खास।
  1. अक्षय तृतीया को युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था।
  2. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया था। नर नारायण ने बद्रीनाथ में तपस्या किया और इसे तीर्थ स्थान बनाया। यही नर नारायण अगले जन्म में अर्जुन और कृष्ण हुए। 
  3. माना जाता है कि महाभारत के युद्ध का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ और पाण्डवों को हस्तिनापुर का साम्राज्य प्राप्त हुआ।
  4. शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण का युग द्वापर का अंत भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
  5. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरणों से निकली और शिव की जटा में वास करने वाली मां गंगा का धरती प आगमन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ।
  6. माना जाता है कि माहाभारत महाकाव्य की रचना बद्रीनाथ से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर माना गांव में गणेश गुफा में हुआ था। महर्षि वेद व्यास एवं श्रीगणेश ने अक्षय तृतीया के दिन ही इस महाकाव्य का लेखन कार्य शुरू किया था।
  7. चार धामों में प्रमुख बद्रीनाथ की यात्रा का आरंभ अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलते हैं उसके अगले दिन केदारनाथ और फिर बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं।
  8. वृन्दावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में पूरे वर्ष में केवल एक बार, अक्षय तृतीया के दिन श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
  9. गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं यह बात कही है। अक्षय तृतीया के दिन ही विष्णु का एक अन्य अवतार हयग्रीव के रूप में हुआ था जिनका सिर अश्व का था।

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आप भी जपें यह मंत्र जल्दी बन सकते हैं धनवान -

हर व्यक्ति की तरह आप भी चाहते होंगे कि आप खूब धनवान बन जाएं, कभी भी जरूरत के समय आपको धन की कमी का सामना नहीं करना पड़े। आपकी यह चाहत पूरी हो सकती है लेकिन इसके लिए आपको शास्त्रों में बताए गए धन वृद्घि करने वाले सिद्घ मंत्रों और सूक्तों का पाठ करना होगा। इससे आप जो भी काम कर रहे हैं उनमें उन्नति होगी और धन आगमन में आने वाली बाधाएं दूर होगी। तो आइए जानें वह कौन से मंत्र और सूक्त हैं जो आपको कम समय ही बना सकते हैं धनवान 
देवी लक्ष्मी धन की देवी है और जिस घर पर लक्ष्मी की कृपा होती है उस घर में सदा धन दौलत की वृद्घि होती रहती है। शास्त्रों में बताया गया है कि जहां नियमित देवी लक्ष्मी के सूक्त 'श्री सूक्त' का पाठ किया जाता है वहां देवी लक्ष्मी का वास रहता है। जो श्री सूक्त का सुबह शाम पाठ करता है उसे कभी धन की कमी नहीं सताती है और न धन की कमी से उसका कोई काम अटकता है।



ॐ श्री ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:। यह भगवान के खंचाजी यानी कोषाध्यक्ष कुबेर से 16 अक्षरों वाला सिद्घ मंत्र है। नियमित इसके जप से अचानक धन का लाभ मिलता रहता है।






विष्णु पुराण में देवी लक्ष्मी की एक स्तुति है। यह स्तुति देवराज इन्द्र ने उस समय की थी जब देवी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी। विष्णु पुराण में उल्लेख किया गया है कि इन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी ने वरदान दिया था कि जो व्यक्ति नियमित इस स्तुति का पाठ करेगा उसके घर में मैं सदैव रहूंगी और उसे कभी धन की कमी नहीं सताएगीद्घ तो आप भी इन्द्र द्वारा की गई लक्ष्मी स्तुती का पाठ करें।



चारों वेदों में सबसे प्राचीन और पहला वेद है ऋग्वेद। इस वेद में धन प्राप्ति का एक सिद्घ मंत्र दिया गया है। इस मंत्र को धन वृद्घि करने वाला सबसे प्राचीन मंत्र माना जाता है। आप भी इस मंत्र का नियमित जप कर सकते हैं 'ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।'


धन संबंधी परेशानियों को दूर करने में कुबेर महाराज का एक छोटा सा मंत्र 'ॐ वैश्रवणाय स्वाहा:' भी बड़ा कारगर है। इस मंत्र का नियमित 108 बार जप करें तो धनागमन में आने वाली बाधाएं दूर होंगी और आप आर्थिक परेशानियों से राहत महसूस करेंगे।



'ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा' यह भगवान श्री कृष्ण का सिद्घ मंत्र है। सवा लाख बार इस मंत्र का जप करन से यह मंत्र जपकर्ता को फल प्रदान करने लगता है। आप भी जपें यह मंत्र श्री कृष्ण आपकी आर्थिक परेशानी दूर करेंगे।




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Monday 20 April 2015

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “जन धन” योजना से जुडी कुछ अति महत्त्वपूर्ण बातें -

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी २८ अगस्त २०१४ को राष्ट्र को अति महत्वकांछी जन धन योजना समर्पित करने जा रहे है प्रधानमंत्री जन धन योजना देश व्यापी आधार योजना का अगला चरण है । इसका उद्देस्य अति गरीब देशवाशियो को अत्याधुनिक बैंकिंग सुविधाओ का लाभ पहुँचना है । प्रधानमंत्री जन धन योजना को एक ऑनलाइन प्रतियोगिता के आधार पर चुना गया जो की ७ जजों की पैनल ने अपनी सहमति से ६००० सुझावों में से चुना ।
प्रधानमंत्री जन धन योजना का नारा है “मेरा खाता - भाग्य विधाता ”। आम तौर पर जन धन योजना उन गरीब भारतीयों के लिए बनाई गयी है जिनके पास कोई बैंक अकाउंट नहीं हैं । प्रधानमंत्री जन धन योजना गरीब भारतीयों के लिए भी डेबिट कार्ड सुनिश्चित है।
इस योजना के तहत भारत के सभी ग्रामीण और क्षेत्रीय इलाको मे और सभी बैंको के सभी खातों द्वारा उन्हें डेबिट कार्ड्स उपलब्ध कराये जायेंगे जो की रु पैय की स्कीम के अन्तर्गत है । वीसा और मास्टरकार्ड के समकछ भारत ने रूपए को बनाया गया है ।सभी खता धारक किसी प्राणघातक दुर्घटना की स्थिति में १ लाख रूपए के बीमा के अधिकारी होंगे।
प्रधानमंत्री जन धन योजना को एक टारगेट के तहत ७.५ करोड़ परिवारों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य के साथ लागू किया जाएगा । उन्हें भारत के बैंकों के नियमो को जाने व् उनसे जुड़ के १५ करोड़ बैंक के खाते खोले जा सके। यानी प्रत्येक परिवार से २ बैंक खाते खुलना इस योजना के अंतर्गत प्रस्तावित है ।
कोई भी एक खाता ६ माह के अंदर खुल जाना चाहिये जोकि खाताधारक से उसकी आधार कार्ड की सुचना से जुड़ा हुआ है।जन धन योजना इन सभी सहायताओं के साथ व्यापार सम्बन्धी और बैंक सम्बन्धी एवं ५००० से कम की धनराशि वाले एवं पुरानी मिलो के खाताधारको को सहायता प्रदान करेगी।
यह जन धन योजना एक लम्बे समय तक चलने वाली तथा कम पैसे में सभी को बराबर की सहायता प्रदान करने वाली डिजिटल इंडिया स्कीम है I

प्रधानमंत्री जन धन योजना से आम लोगों को क्या लाभ होगा और कौन-कौन सी सुविधाएं मिलेंगी, उस पर एक नजर -

1- "इस योजना में बिना किसी रूपए जमा किए बैंक खाते खोले जाएंगे यानी जीरो बैलेंस पर खाते खुलेंगे।

2- आर्थिक रूप से पिछड़े जिन परिवारों के पास बैंक खाता नहीं है उनके बैंक खाते खुलवाए जाएंगे। इसमें साढे सात करोड़ परिवारों को शामिल किया जाएगा।

3- हर परिवार में कम से कम दो खाते खुलवाएं जाने की योजना है। यानी कुल 15 करोड़ खाते खोले जाने हैं।

3- इस योजना के तहत खाता खुलवाने पर व्यक्ति को 1 लाख रूपए की दुर्घटना बीमा मिलेगी। 

4- खाता खुलवाने के साथ ही ग्राहक को "रूपे" डेबिट कार्ड की भी सुविधा दी जाएगी। 

5- इस योजना के तहत आधार कार्ड से खुले खातों में 6 महीने बाद ग्राहक आवदेन देने पर जमा राशि से 5000 रूपए की अधिक राशि निकाल सकेगा। 

6- इस योजना का पहला चरण अगस्त 2014 में खत्म होगा। 

7- इस योजना का दूसरा चरण 2015 से 2018 तक चलेगा। उसमें पेंशन योजना "स्वालंबन" की भी सुविधा दी जाएगी। 

8- इसके पहले चरण में बैंक सात हजार से अधिक शाखाएं खोलेंगे और 20 हजार से अधिक एटीएम लगाएंगे। 

9- योजना के शुभारंभ के दिन खाता खोलने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 60 हजार से अधिक कैंप लगाए गए।

10- इस योजना को लागू करने से 50 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। 

11- इस खाते को खुलवाने के लिए आधार कार्ड या उसका नंबर, मनरेगा जॉब कार्ड, वेाटर आईडी कार्ड, राशन, ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली या टेलफोन बिल, जन्म या विवाह प्रमाण पत्र, सरपंच का लिखा पहचान पत्र और किसी मान्यता प्राप्त संस्था का पहचान पत्र जरूरी है।

12 सरकार खाता खुलवाने के बाद लक्षित लोगों को ही सब्सिडी देने पर विचार कर सके गी। इससे आम आदमी को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी और वह बचत भी करेगा, जिससे सरकार को फायदा मिलेगा।

ये जानकारी अंतर्जाल (इंटरनेट) के सौजन्य से उपलब्ध हुई है।

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भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी - भाग 2

भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी - भाग 1
 से आगे भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण का खूनी इतिहास (भाग-२) । ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ। ५-कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०) हसन निजामी ने अपने ऐतिहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन को अल्लाह ने इस्लाम के शत्रुओं यानी हिन्दुओं-के धर्म के पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया...उसने मूर्ति पूजकों के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मन्दिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवादी थीं।' (ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड २ पृष्ठ २०९) 'कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मन्दिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरों को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया।' (वही पुस्तक पृष्ठ २२२) इस्लाम का कालिंजर में प्रवेश 'मन्दिरों को तोड़कर अल्लाह के स्थान मस्जिदों में रूपान्तरित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामोनिशान मिटा दिया गया....पचास हजार हिन्दुओं को घेरकर बन्दी बना लिया गया और उनके सामूहिक वध के कारण मैदान लाल हो गया। (उसी पुस्तक में पृष्ठ २३१) 'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया, और सम्पूर्ण देश को मूर्तिपूजा से मुक्त कर दिया, और अपने शाही उत्साह और शक्ति द्वारा किसी भी मन्दिर को खड़ा नहीं रहने दिया।' (वही पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)
५-मुहम्मद बख्तियार खिलजी (१२०४-१२०६) बख्तियार खिलजी को हिन्दू/बुद्ध शिक्षा केन्द्रों को खोजने और नष्ट करने में विशेष रुचि थी। नालन्दा की लूट के विषय में मिन्हाज़ ने लिखा था- ' बख्तियार बेहर किले के द्वार पर पहुँचा और हजारों काफिरों एवं विद्यार्थियों को मारकर स्थान को अपने अधिकार में कर लिया। विजेताओं के हाथ लूट का अपार माल हाथ लगा। निवासियों में अधिकांश नंगे-मुड़े हुए सिर वाले ब्राहम्ण थे। उन सभी काफिरों का वध कर दिया गया। वहाँ असंखय पुस्तकें मिलीं और मुसलमानों ने उन्हें देखा और किसी को बुलाकर जानना चाहा कि उनमें क्या लिखा है तो पाया कि वहाँ तो कोई हिन्दू बचा ही नहीं। सभी का वध हो चुका है। जब इस्लाम स्वीकार कर चुके कुछ लोगों को बुलाया तब उनकी समझ में आया कि वह सारा स्थल काफिरों की शिक्षा का बड़ा स्थान है तो सारे स्थल को जलाकर भस्म कर दिया। वहाँ इतनी पुस्तकें थीं कि चार महीनों तक जलती रहीं। (तबाकत-ई-नासिरी, मिन्हाज़-उज़-सिराज, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ ३०६) ७-अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६) खिलजी दरबार के उस समय के मुस्लिम इतिहास लेखक, जियाउद्दीन बरानी ने अपने प्रसिद्ध प्रलेख-तारीख-ई-शाही-में लिखा था, 'सारा गुजरात अलाउद्दीन की सेना का शिकार हो गया और सोमनाथ की मूर्ति, जो मुहम्मद गौरी के गज़नी चले जाने के बाद हिन्दुओं ने पुनः स्थापित कर दी गई थी, को हटाकर दिल्ली ले आया गया और लोगों के पैरों तले कुचले जाने, अपमानित किये जाने के लिए मस्जिदों की सीढ़ियों में लगा दी गई।' (तारीख-ई-फीरोजशाही : जियाउद्दीन बारानी, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १६३) 'अलाउद्दीन की सेनायें सम्पूर्ण देश के एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्रों में गईं और विनाश किया। वे अपने साथ अधिकाधिक दास, काफिरों को धर्मान्तरित किया और हजारों हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर लाये। जिन्हें योद्धाओं के हरम में भेज दिया गया। गाजी लोग पुनः गुजरात गये अब्दुल्ला वस्साफ ने अपने इतिहास प्रलेख-तारीख-ई- वस्साफ-में लिखा था-' उन्होंने कम्बायत को घेर लिया और मुसलमानों ने इस्लाम के लिए पूर्ण जिहाद किया। निर्दयतापूर्वक चारों ओर-दायी और बाईं ओर सारी अपवित्र भूमि पर मूर्तिपूजकों का वध और कत्ल शुरू कर दिये और हिन्दुओं का रक्त मूसलाधार वर्षा की तरह बहा।' (तारीख-ई-वस्साफ अब्दुल्ला वस्साफ अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ४२-४३) लूट और मूर्ति भन्जन जियाउद्दीन बरानी की भाँति अब्दुला वस्साफ ने भी अल्लाउद्दीन द्वारा सोमनाथ की लूट का विस्तृत सजीव विवरण लिखा था। अपने प्रलेख में वस्साफ ने लिखा था- 'उन्होंने सोमनाथ में लगभग बीस हजार सुन्दर सभ्य हिन्दू महिलाओं को बन्दी बना लिया और अनगिनत बच्चों को, जिनकी संख्या कलम भी लिख भी न सके, भी बन्दी बना लिया....संक्षेप में मुहम्मद की सेना ने सम्पूर्ण देश का विकराल विनाश किया, निवासियों के जीवनों को नष्ट किया, शहरों को लूटा; और उनके बच्चों को बन्दी बनाया, बहुत से मन्दिरों का विध्वंस किया गया, मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और पैरों के नीचे रौंदी गईं और हजारों को लोगों ने प्राण बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार किया।' प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरु ने लिखा था-' हमारे पवित्र सैनिकों की तलवारों के कारण सारा देश एक काँटों रहित जंगल जैसा हो गया है। हमारे सैनिकों की तलवारों के वारों के कारण काफिर हिन्दू भाप की तरह समाप्त कर दिये गये हैं। हिन्दुओं में शक्तिशाली लोगों को पाँवों तले रोंद दिया गया है। इस्लाम जीत गया है, मूर्ति पूजा हार गई है, दबा दी गई है।
(तारीख-ई-अलाई अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III )
निजामुद्दीन औलिया जो दूर-दूर तक देहली के सूफी चिश्ती के रूप में विख्यात है, के कवि शिष्य, अमीर खुसरु, ने अपने प्रलेख-तारीख-ई-अलाई-में अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत में जिहाद का बड़े आनन्द के साथ विवरण किया है- 'उस समय के खलीफा की तलवार की जीभ, जो कि इस्लाम की ज्वाला की भी जीभ है, ने सारे हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण अँधेरे को अपने मार्गदर्शन द्वारा प्रकाश दिया है...दूसरी ओर तोड़े गये सोमनाथ
मन्दिर से इतनी धूल उड़ी जिसे समुद्र भी, भूमि पर नीचें स्थापित नहीं कर सका; दायीं ओर बायीं ओर,
समुद्र से लेकर समुद्र तक हिन्दुओं के देवताओं की अनेकों राजधानियों को, जहाँ जिन्न के समय से
ही काफिरों (हिन्दुओं) की शैतानी बस्तियाँ थी, सेना ने जीत लिया है और सभी कुछ विध्वंस कर दिया गया है। देवगिरी (अब दौलताबाद) में अपने प्रथम आक्रमण के प्रारम्भ द्वारा, सुल्तान ने, मूर्ति वाले मन्दिरों के ध्वंस द्वारा, गैर-मुसलमानों की सारी अपवित्रताओं को समाप्त कर दिया है और उन्हें इस्लाम में दीक्षित किया है ताकि अल्लाह के कानून के प्रकाश की किरणें इन अपवित्र देशों को पवित्र व प्रकाशित करें, मस्जिदों में नमाज़ें हों और अल्लाह की प्रशंसा हो।'
(तारीख-ई-अलाई अमीर खुसरु - अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ८५)

बर्नी ने अपने प्रलेख में आगे लिखा कि- 'सुल्तान ने काजी से पूछा कि इस्लामी कानून में हिन्दुओं की क्या स्थिति है? काज़ी ने उत्तर दिया, 'ये जाजिया (टैक्स) देने वाले लोग हैं और जब आय अधिकारी इनसे चाँदी मांगें तो इन्हें अपनी जान बचाने के लिए पूर्ण विनम्रता, व आदर से सोना देना चाहिए। यदि अफसर इनके मुँह में थूक फेंकें तो इन्हें उसे लेने के लिए अपने मुँह खोल देने चाहिए। इस्लाम की महिमा गाना इनका कर्तव्य है...अल्लाह इन पर घृणा करता है, इसीलिए वह कहता है, 'इन्हें दास बना कर रखो।' हिन्दुओं को नीचा दिखाकर रखना एक धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि हिन्दू पैगम्बर के सबसे बड़े शत्रु हैं और चूंकि पैगम्बर ने हमें आदेश दिया है कि हम इनका वध करें, इनको लूट लें, इनको बन्दी बना लें, इस्लाम में धर्मान्तरित कर लें
या हत्या कर दें (कुरान. ९ : ५)। इस पर अलाउद्दीन ने कहा, 'अरे काजी! तुम तो बड़े विद्वान आदमी हो यह पूरी तरह इस्लामी कानून के अनुसार ही है, कि हिन्दुओं को निकृष्टतम दासता और आज्ञाकारिता के लिए विवश किया जाए...हिन्दू तब तक विनम्र और दास नहीं बनेंगे जब तक इन्हें अधिकतम निर्धन न बना दिया जाए।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही-बारानी अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १८४-८५)

बारानी की तारीख-ई-फीरोजशाही के संदर्भ में मोरलैण्ड ने अपने प्रसिद्ध शोध, 'अग्रेरियन सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया' में लिखा है- 'सुल्तान ने इस्लामी विद्वानों से उन नियमों और कानूनों को पूछा,ताकि हिन्दुओं को पीसा जा सके, सताया जा सके, और उनकी सम्पत्ति और अधिकार, सब छीना जा सके।'

(मोरलैण्ड-दी ऐग्रेरियान सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया एण्ड दी देहली सुल्तनेट, भारतीय विद्या भवन द्वितीय आवृत्ति पृष्ठ २४)

इस सन्दर्भ में बारानी ने लिखा कि जिन हिन्दुओं ने अल्लाह का धर्म इस्लाम स्वीकार नहीं किया अलाउद्दीन ने उन्हें यातनाएँ देकर कत्ल करा दिया और उनके आश्रितों की दशा इतनी हीन, पतित और कष्ट युक्त बना दी थी, और उन्हें इतनी दयनीय दशा में पहुँचा दिया था, कि उनकी महिलाएं और बच्चे मुसलमानों के घर भीख माँगने के लिए विवश थे।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही और फ़तवा-ई-जहानदारी : एलियट और डाउसन, खण्ड III)

सभी मुस्लिम शासकों के लिए दास हिन्दुओं की क्रय- विक्रय सरकारी आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत था। किन्तु खिलजियों और तुगलकों के काल में हिन्दुओं पर इन यातनाओं का स्वरूप गगन चुम्बी एवं अधिकतम हो गया था। अमीर खुसरु ने बताया- 'तुर्क जब चाहते थे हिन्दुओं को पकड़ लेते, क्रय कर लेते अथवा बेच देते थे और उनकी महिलाओं को सुल्तान और उसके अफसरों या सिपहसालारों के हरम में भेज दिया जाता था।
इन यातनाओं से बचने के लिए मस्जिदों के बाहर मुसलमान बनने के लिए हिन्दुओं की कतारें हमेशा लगी ही रहती थी।
(अमीर खुसरु : नूर सिफर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५६१)

बरनी ने आगे लिखा कि ' घर में काम अाने वाली वस्तुएँ जैसे गेहूँ, चावल, घोड़ा और पशु आदि के मूल्य जिस
प्रकार निश्चित किये जाते हैं, अलाउद्दीन ने बाजार में हिन्दू दासों के मूल्य भी निश्चित कर दिये। एक हिन्दू लड़के का विक्रय मूल्य २०-३० तन्काह तय किया गया था। दास लड़कों का उनके कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। काम करने वाली लड़कियों का मानक सौंदर्य था। अच्छी दिखने वाली स्वस्थ यौवनशील लड़की का मूल्य २०-४० तन्काह, और सुन्दर उच्च परिवार की लड़की का मूल्य एक हजार से लेकर दो हजार तन्काह होता था।'
(बरानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III ,हिस्ट्री ऑफ खिलजीज़, के. एस. लाल, पृष्ठ ३१३-१५)

८-मुहम्मद बिन तुगलक (१३२६-१३५१)

भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने, बिन तुगलक का एक सदभावना युक्त अर्धविक्षिप्त, उदार और सुधारक के रूप में बहुत लम्बे काल से, स्वागत किया है, प्रशंसा की है। नेहरूवादी प्रतिष्ठान कांग्रेस ने तो देहली की एक प्रसिद्ध सड़क का नाम भी उसकी स्मृति में तुगलक रोड रख दिया। किन्तु एक विश्व-प्रसिद्ध भ्रमणकर्ता, अफ्रीकी यात्री, इब्न बतूता, जिसने तुगलक के दरबार को देखा था, ने तुगलक के राज्य के कुछ दृश्यों के बारे में लिखा। सुल्तान से अपनी पहली भेंट के संदर्भ में, बतूता ने लिखा था, ५००० दीनार के मूल्य के गाँव, एक घोड़ा,
दस हिन्दू महिला दासियाँ और ५०० दीनार मुझे अनुदान स्वरूप मिले।
 (इब्न बतूता : अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८६)

हिन्दुओं को दास बनाने के काम के कारण बिन तुगलक इतना बदनाम हो गया था कि उसकी ख्याति दूर-दूर
चारों ओर फैल गई थी कि इतिहास अभिलेखक शिहाबुद्दीन अल-उमरी ने अपने अभिलेख, 'मसालिक-उल-अब्सर में उसके विषय में इस प्रकार लिखा था-' सुल्तान गैर-मुसलमानों (हिन्दुओं) पर युद्ध करने के अपने सर्वाधिक उत्साह में कभी भी, कोई, कैसी भी कमी नहीं करता था...हिन्दू बन्दियों की संख्या इतनी अधिक थी कि प्रतिदिन अनेकों हजार हिन्दू दास बेच दिये जाते थे।'
(मसालिक-उल-अब्सार : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८०)

मुस्लिम हाथों में हिन्दू महिलाओं का उपयोग या तो काम तृप्ति के लिए था या विक्रय कर धन कमाने के लिए था। अल-उमरी आगे और कहता है। 'दासों के मूल्यों में कमी होने पर भी युवा हिन्दू लड़कियों के मूल्य बढ़े रहते थे।
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ५८०-८१)

इस सन्दर्भ में सुल्तान द्वारा हिन्दुओं को दास बनाये जाने का इब्नबतूता का प्रत्यक्ष दर्शी वर्णन इस प्रकार है- ' सर्वप्रथम युद्ध के मध्य बन्दी बनाये गये, काफिर राजाओं की पुत्रियों को अमीरों और महत्वपूर्ण विदेशियों को उपहार में भेंट कर दिया जाता था। इसके पश्चात अन्य काफिरों की पुत्रियों को...सुल्तान अपने भाइयों व सम्बन्धियों को दे देता था।'
(तुगलक कालीन भारत, एस. ए.रिज़वी, भाग १, पृष्ठ १८९)

हिन्दू सिरों का शिकार

अन्य राजाओं की भाँति बिन तुगलक भी शिकार को जाया करता था। वह शिकार होती था हिन्दू सिरों का।
इस विषय में इब्नबतूता ने लिखा था- ' तब सुल्तान शिकार के अभियान के लिए बारान गया जहाँ उसके आदेशानुसार सारे हिन्दू देश को लूट लिया गया और विनष्ट कर दिया गया। हिन्दू सिरों को एकत्र कर लाया गया और बारान के किले की चहारदीवारी पर टाँग दिया गया।' 
(इब्न बतूता : एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २४२)

९-फिरोज़ शाह तुग़लक (१३५७-१३८८)
फिरोजशाह तुगलक के शासन का वर्णन चार भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में लिखा गया है। वे अभिलेख हैं- १. तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्दीन बारानी, २. तारीख-ई-फिरोजशाही, सिराज अफीफ, ३.
सिरात-ई-फिरोजशाही, फरिश्ता, ४. फुतूहत-ई-फिरोजशाही, फीरोजशाह तुगलक स्वयं।हिन्दू महिलाओं का हरम या ज़नानखाना काम तृप्ति के लिए हिन्दू महिलाओं के दासी बनाये जाने के विषय में बारानी ने लिखा था- 'फिरोजशाह के लिए, व्यापक एवम् विविध वर्गों की पकड़ी गई हिन्दू महिलाओं के जनानखानों में नियमित रूप से जाना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था।'
(तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्दीन बारानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III)

ताजरीयत-अल-असर के अनुसार 'मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं द्वारा भगाई हुई हिन्दू महिलाओं के साथ मात्र शील भंग ही नहीं किया जाता था वरन उनके साथ अनुपम, अवर्णनीय यातनायें भी दी जाती थीं जैसे लाल गर्म लोहे की सलाखों को हिन्दू महिलाओं की योनियों में बलात घुसा देना, उनकी योनियों को सिल देना, और उनके
स्तनों को काट देना।'

बंगाल में नर संहार
'बंगाल में हार के बदले के लिए, फीरोजशाह ने आदेश दिया कि असुरक्षित बंगाली हिन्दुओं का अंग भंग कर
वध कर दिया जाए। अंग भंग किये गये प्रत्येक हिन्दू के ऊपर इनाम स्वरूप एक चाँदी को टंका दिया जाता था। हिन्दू मृतकों के कटे हुए अंगों की गिनती की गई जो १,८०,००० निकले' 
(बारानी, उसी पुस्तक में)

ज्वालामुखी मंदिर का विनाश
फरिश्ता ने आगे लिखा- 'सुल्तान ने ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्तियों को तोड़ दिया, उसके टुकड़ों को वध की गई गउओं के मांस में मिला दिया और मिश्रण को तोबड़ों में भरवा कर ब्राहम्णों की गर्दनों में बँधवा दिया, और प्रमुख मूर्ति को मदीना भेज दिया।'
(उसी पुस्तक में)

उड़ीसा का विध्वंस
सिरात-ई-फीरोजशाही में फरिश्ता ने लिखा- 'फिरोज़शाह, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में, घुसा, मूर्ति को उखाड़ा और अपमान कारक स्थान पर रखने के लिए देहली ले गया। पुरी के पश्चात् फीरोजशाह समुद्रतट के निकट चिल्का झील की ओर गया। सुल्तान ने उस पूरे टापू को हिन्दुओं के वध द्वारा उत्पन्न रक्त से रक्त हौज बना दिया। हिन्दू महिलाओं को काम तृप्ति के लिए पकड़कर ले जाया गया, गर्भवती महिलाओं का पहले शील भंग किया गया फिर उनमें से कुछ की आँते निकालकर वध कर दिया गया ।'
(सीरात-ई-फिरोजशाही फरिश्ता)

इस संदर्भ में यह लिखने योग्य है कि एक अन्य महत्वपूर्ण सड़क और दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम का नाम इसी गाजी फिरोज़शाह को सम्मान देने के लिए नेहरू ने इसके के नाम पर रखा है।

पहला भाग यहाँ है  भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी - 1
to be continued ..in part-3

नोट- इन ऐतिहासिक वर्णनों में एक शब्द भी मेरा नहीं है। ये पूरा वर्णन खुद इन सुल्तानों के नजदीकी इतिहास लेखकों का है जो इनकी विजयों को लेखनबद्ध करने के लिए हमेशा इनके साथ ही रहा करते थे। जिन्हें बाद में एलियट और डाउसन ने अपनी पुस्तक "The history of India as told by its own historians" में अनुवाद किया था।
अपनी पुस्तक के लोकार्पण के समय दोनों ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि इन अमानवीय अत्याचारों के अनुवाद के दौरान उन्हें कई दिनों तक नींद नहीं आयी और कई बार वो रो पड़े थे।

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