Thursday 27 August 2015

क्या है रक्षा बंधन ? कैसे मनाएं रक्षा बंधन पर्व, संपूर्ण विधि, मंत्र और कथा -


भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं।

राखी का वास्तविक अर्थ भी यही है कि किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। इस दिन बहनें भाइयों को सूत की राखी बांधकर अपनी जीवन रक्षा का दायित्व उन पर सौंपती हैं।

इस दिन केवल बहनें ही भाइयों को राखी बांधें, ऐसा आवश्यक नहीं है। त्योहार का वास्तविक आनंद पाने के लिए धर्म-परायण होना जरूरी है। इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है।

जन साधारण को चाहिए कि प्रातःकालीन कर्मों से निवृत होकर स्नान-ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें अथवा सूत के वस्त्र में चावल की छोटी-छोटी गांठें, केसर अथवा हल्दी से रंग में रंग लें। चावल के आटे का चौक पूरकर मिट्टी के छोटे से घड़े की स्थापना करें।

पुरोहित बुलवा कर विधिपूर्वक कलश का पूजन करवाएं। पूजनोपरांत चावल वाली गांठों को पुरोहित यजमान की कलाई में बांधते हुए यह मंत्र पढ़ें : -
'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनत्वामभिबघ्नामि रक्षे माचल-माचलः।'
 तत्पश्चात अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाएं।

रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि :-
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुमकुम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुमकुम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।


इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत-प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।


रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व :-
भाई-बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं।


प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधी जाती है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए।
रक्षाबंधन की कथा :-
रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इस सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए।
शिशुपाल के वध के समय सुदर्शन चक्र से भगवान श्री कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया।
आधुनिक समय में राजपूत रानी कर्णावती की कहानी काफी प्रचलित है। राजपूत रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया
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रक्षाबंधन पर किए जाते हैं अनोखे टोटके -


रक्षाबंधन का पावन पर्व इस बात का शुभ प्रतीक है कि रिश्तों में विश्वास, सम्मान और मिठास बनी रहे। इस अवसर पर कुछ विशेष पूजन भी किया जाता है। कई क्षेत्रों में इस दिन अपने ग्रह दोष निवारण संबंधी उपाय भी आजमाए जाते हैं।

आइए जाने कुछ प्रमुख और सरल टोटके : -
(1) जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि नीच या शत्रु राशि में या खराब स्थान पर बैठा हो, वे काले पत्थर के चौकोर टुकड़े पर शनि यंत्र खड़िया से बनाकर अपने से पर से 8 बार उतारकर कुएं में फेंक दें। फिर कभी उस कुएं का जल नहीं पीएं।
(2) कांच की एक बोतल में सरसों का तेल भरकर उसे कांच के कंचे से ही बंद कर अपने पर से उतारकर बहते जल के नीचे दबाएं।
(3) राहु खराब होने की स्थिति में 11 नारियल पानी वाले अपने परसे उतारकर बहते जल में डालें।
(4) चन्द्र खराब होने की स्थिति में दूध से चन्द्र को अर्घ्य देकर वहीं बैठकर 'ॐ सोमेश्वराय नम:' का यथाशक्ति जप करें। दूध का दान करें।
(5) जिन्हें कालसर्प दोष हो, वे सर्प पूजन करें तथा चांदी की डिब्बी में शहद भरकर वीराने में गाड़ें।
(6) माता सरस्वती का मंत्र 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' स्फटिक की माला पर यथाशक्ति जपें, लाभ होगा। चंद्र एवं राहु की शांति होगी।
(7) शत्रु शांति के लिए हनुमानजी को चोला चढ़ाएं तथा गुड़ का नेवैद्य, गुलाब के पुष्प चढ़ाएं।
(8) ऐसा कोई पौधा, जो किसी वटवृक्ष के नीचे लगा हो, घर में लाकर गमलें में लगाएं, समृद्धि बढ़ेगी।
(9) नजर दोष हो तो फिटकरी का टुकड़ा नजर लगे व्यक्ति पर से उतारकर चूल्हे में जला दें, दोष दूर होगा।
(10) किसी व्यक्ति ने पैसा लिया तो है, लेकिन दे नहीं रहा। सूखे कपूर से काजल पाड़ें तथा एक कागज पर उसका नाम लिखकर भारी पत्‍थर के नीचे दबा दें, लाभ होगा।
(11) यदि घर में आए दिन दुर्घटना होती हों तो काली या महाकाली यंत्र को घर में छुपाकर स्थापित कर दें।
 (12) विवाह न हो रहा हो तो पुराना ताला जो खुला हो तथा खराब भी न हो, चाभी अपने पास रख लें तथा अपने से पर से उतारकर रात्रि में चौराहे पर फेंक दें, पलटकर न देखें। 
 (13) बीमारी ठीक न हो रही हो तो रात्रि में कुछ हलुवा पत्तल पर रखकर रोगी पर से 11 बार उतारकर चौराहे पर रख दें या रात्रि में एक दिन पहले कोई सिक्का रोगी के सिरहाने रख दें। सुबह श्मशान में फेंक दें।

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Tuesday 18 August 2015

जहां चूहे लगाते हैं इच्छाधारी नाग की परिक्रमा -

इस बार हम आपको एक ऐसे मंदिर में ले जा रहे हैं, जिसका अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है और जिससे जुड़े हैं कई चमत्कार। यह है राजा गंधर्वसेन की नगरी गंधर्वपुरी का गंधर्वसेन मंदिर। यह सिंहासन बत्तीसी की एक 'कहानी' का स्थान है। 

भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी गंधर्वपुरी के गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच बैठता है पीले रंग का एक इच्छाधारी नाग, जिसके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं। आखिर क्यों इस रहस्य को कोई आज तक नहीं जान पाया।

गांव के लोग इसे नागराज का 'चूहापाली' स्थान कहते हैं और इस स्थान को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं। कहते हैं कि नाग और चूहे आज तक नहीं द‍िखे, लेकिन परिक्रमा पथ पर चूहों की सैकड़ों लेंड‍ियां और उसके बीचोबीच नाग की लेंडी पाई जाती है। गांव वालों ने उस स्थान को कई बार साफ कर दिया, लेकिन न मालूम वे लेंडियां कहां से आ जाती हैं।

इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है। मालवा क्षत्रप गंधर्वसेन को गर्धभिल्ल भी कहा जाता था। वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां पर राजा गंधर्वसेन का मंदिर सात-आठ खंडों में था। बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी। अब राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है, बाकी सब काल कवलित हो गए।

यहां के पुजारी महेश कुमार शर्मा से पूछा गया कि चूहे इच्छाधारी नाग की परिक्रमा लगाते हैं इस बात में कितनी सचाई है, तो उनका कहना था कि यहां नाग की बहुत ही 'प्राचीन बाम्बी' है और आसपास जंगल और नदी होने की वजह से कई नाग देखे गए हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहों को देखना मुश्किल ही है, फिर भी न जाने कहां से चूहों की लेंडी आ जाती हैं, जबकि ऊपर और नीचे साफ-सफाई रखी जाती है। हम हमारे पूर्वजों से सुनते आए हैं कि इस मंदिर की रक्षा एक इच्छाधारी नाग करता है। 

यहां के स्थानीय निवासी कमल सोनी और केदारसिंह कुशवाह बताते हैं कि हम बचपन से ही चूहापाली के इस चमत्कार को देखते आए हैं। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि यहां इस बाम्बी में एक इच्छाधारी पीला नाग रहता है, जो हजारों वर्ष पुराना है। उसकी लम्बी-लम्बी मूंछें हैं और वह लगभग 12 से 15 फीट का है। हमारे ही गांव के रमेशचंद्र झालाजी ने वह नाग देखा था। बहुत किस्मत वालों को ही वह दिखाई देता है।

शेरसिंह कुशवाह, विक्रमसिंह कुशवाह और केदारसिंह कुशवाह का कहना है कि हमारा घर मंदिर के निकट है। रोज ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर से घंटियों की कभी-कभार आवाज सुनी गई है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अक्सर ऐसा होता है कि जब मंदिर का ताला खोला जाता है तो पूजा-आरती के पूर्व ही मंदिर अंदर से साफ-सुथरा मिलता है और ऐसा लगता है जैसे किसी ने पूजा की हो। 

जिस तरह इस मंदिर में चूहे नाग की परिक्रमा करते हैं वैसे ही यहां की नदी सोमवती भी इस मंदिर का गोल चक्कर लगाते हुए कालीसिंध में जा मिली है।

जब हमने गंधर्वपुरी गांव के सरपंच विजयसिंह चौहान से इस संबंध में बात की तो उनका भी यही कहना था कि चूहापाली में सैकड़ों सालों से यह चल रहा है। यहां परिक्रमा के अवशेष पाए जाते हैं, लेकिन आज तक किसी ने देखा नहीं। गांव के बड़े-बूढ़ों से सुनते आए हैं।

यह एक प्राचीन नगरी है और यहां आस्था की बात पर ग्रामीणजन कहते हैं कि गंधर्वसेन के मंदिर में आने वाले का हर दुख मिटता है। जो भी यहां आता है उसको शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इसका गुंबद परमारकाल में बना है, लेकिन नींव और मंदिर के स्तंभ तथा दीवारें बौद्धकाल की मानी जाती हैं। राजा गंधर्वसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि के पिता थे।

अब यह आपको तय करना है कि क्या वाकई यह चमत्कार है या अंधविश्वास।

कैसे पहुंचे : 
देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है गंधर्वपुरी। देवास से बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। देवास के लिए इंदौर से बस और ट्रेन उपलब्ध है।


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नागपंचमी : नागवंश का इतिहास और नागपूजा -

नागपंचमी को सांप पंचमी क्यों नहीं कहा जा सकता? सरीसृप प्रजाति के प्राणी को पूजा जाता है,वह सर्प है किन्तु नाग तो एक जाति है जिनके संबंध में विभिन्न मतानुसार अलग-अलग मान्यताएं है-यक्षों की एक समकालीन जाति सर्प चिन्ह वाले नागों की थी,यह भी दक्षिण भारत में पनपी थी। नागों ने लंका के कुछ भागों पर ही नहीं,वरन प्राचीन मलाबार पर अधिकार जमा रखा था। 
रामायण में सुरसा को नागों की माता और समुद्र को उनका अधिष्ठान बताया गया है। महेंद्र और मैनाक पर्वतों की गुफाओं में भी नाग निवास करते थे। हनुमानजी द्वारा समुद्र लांघने की घटना को नागों ने प्रत्यक्ष देखा था। 
नागों की स्त्रियां अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। रावण ने कई नाग कन्याओं का अपहरण किया था। प्राचीन काल में विषकन्याओं का चलन भी कुछ ज्यादा ही था। इनसे शारीरिक संपर्क करने पर व्यक्ति की मौत हो जाती थी। ऐसी विषकन्याओं को राजा अपने राजमहल में शत्रुओं पर विजय पाने तथा षड्यंत्र का पता लगाने हेतु भी रखा करते थे। रावण ने नागों की राजधानी भोगवती नगरी पर आक्रमण करके वासुकि,तक्षक,शंक और जटी नामक प्रमुख नागों को परास्त किया था। कालान्तर में नाग जाति चेर जाति में विलीन गई ,जो ईस्वी सन के प्रारम्भ में अधिक संपन्न हुई थी। 
नागपंचमी मनाने के संबंध में एक मत यह भी है कि अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने तपस्या में लीन ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि यही सर्प सात दिनों के पश्चात तुम्हे जीवित होकर डस लेगा,ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा। तब क्रोधित होकर राजा परीक्षित के बेटे जन्मजय ने विशाल "सर्प यज्ञ" किया जिसमे सर्पो की आहुतियां दी। 
इस यज्ञ को रुकवाने हेतु महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का  कारण यह था कि महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी। इसी नाते से वे यज्ञ होते देख न देख सके।सर्प यज्ञ रुकवाने,लड़ाई को ख़त्म करने पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यो ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में 'सर्प पूजा' को एक त्योहार के रूप में मनाने की शुरुआत की। 
नागवंश से ताल्लुक रखने पर उसे नागपंचमी कहा जाने लगा होगा। मास्को के लेखक ग्री म वागर्द लोविन ने प्राचीन 'भारत का इतिहास' में नाग राजवंशों के बारे में बताया कि मगध के प्रभुत्व के सुधार करने के लिए अजातशत्रु का उत्तराअधिकारी उदय (461-ईपू )राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र ले गया,जो प्राचीन भारत प्रमुख बन गया। अवंति शक्ति को बाद में राजा शिशुनाग के राज्यकाल में ध्वस्त किया गया था। एक अन्य राज शिशुनाग वंश का था। शिशु नाग वंश का स्थान नंद वंश (345 ईपू)ने लिया।  

भाव शतक में इसे धाराधीश बताया गया है अर्थात नागों का वंश राज्य उस समय धरा नगरी(वर्तमान में धार) तक विस्तृत था। धाराधीश मुंज के अनुज और राजा भोज के पिता सिन्धुराज या सिंधुज ने विध्याटवी के नागवंशीय राजा शंखपाल की कन्या शशिप्रभा से विवाह किया था। इस कथानक पर परमारकालीन राज कवि परिमल पदमगुप्त ने नवसाहसांक चरित्र ग्रंथ की रचना की। मुंज का राज्यकाल 10 वीं शती ईपु का है। अतः इस काल तक नागों का विंध्य क्षेत्र में अस्तित्व था।

नागवंश के अंतिम राजा गणपतिनाग थे। इसके बाद नाग वंश की जानकारी का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। नाग जनजाति का नर्मदा घाटी में निवास स्थान होना बताया गया है। लगभग 1200  ईपु हैहय ने नागों को वहां से उखाड़ फेंका था।कुषान साम्राज्य के पतन के बाद नागों का पुनरोदय हुआ और यह नव नाग कहलाए। 
इनका राज्य मथुरा,विदिशा,कांतिपुरी,(कुतवार )व् पदमावती (पवैया )तक विस्तृत था। नागों ने अपने शासन काल के दौरान जो सिक्के चलाए थे उसमे सर्प के चित्र अंकित थे। इससे भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि नागवंशीय राजा सर्प पूजक थे। शायद इसी पूजा की प्रथा को निरंतर रखने हेतु श्रावण शुक्ल की पंचमी को नागपंचमी का चलन रखा गया होगा। कुछ लोग नागदा नामक ग्रामों को नागदा से भी जोड़ते है। यहां नाग-नागिन की प्रतिमाएं और चबूतरे बने हुए हैं  इन्हे भिलट बाबा के नाम से भी पुकारा है। 
उज्जैन में नागचंद्रेश्वर का मंदिर नागपंचमी के दिन खुलता है व सर्प उद्यान भी है। 
खरगोन में नागलवाड़ी क्षेत्र में नागपंचमी के दिन मेला व बड़ा भंडारा होता है।स र्प कृषि मित्र है व सर्प दूध नहीं पीते हैं,उनकी पूजा करना व रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

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नागपंचमी पर ऐसे करें पूजा, जानिए कालसर्प दोष के उपाय -

प्रतिवर्ष नागपंचमी को सर्प का पूजन किया जाता है। कई जगह नाग बीम के स्थान पर जाकर भी पूजन करते है। 
इस बार नाग पंचमी सोमवार को भद्रा विष्टिकरण योग में लग रही है। इस दिन उज्जैन के सिद्धवट या त्र्यंबकेश्वर में जाकर कालसर्प दोष का विधिपूर्वक पूजन किया जाए, तो अशुभ योग कालसर्प दोष का शमन होकर शुभ फल की प्राप्ति होती है। 
इस वर्ष शुक्ल पक्ष श्रावण सोमवार होने से नागपंचमी का विशेष महत्व बढ़ गया है। साक्षात्‌ भगवान आशुतोष देवाधिदेव महादेव ने ही सर्पों को धारण कर रखा है। 

इस दिन घरों में तवे पर रोटी नहीं बनाई जाती है, कहते है कि तवा नाग के फन का प्रतिरूप होने से हिन्दू धर्म में तवे को अग्नि पर रखना वर्जित है। इस दिन दाल-बाटी-चूरमे के लड्डू बना कर नाग देवता का पूजन किया जाता है। 

ध्यान रहे कि नाग पूजन करते वक्त नाग को दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि नाग कभी भी तरल पदार्थ सेवन नहीं करता यदि भुलवश चला भी जाए तो वह उसके लिए प्राणघातक होता है। जिस प्रकार हमारे फेफड़ों में पानी या कोई भी वस्तु चली जाए तो हमारे प्राण संकट में पड़ जाते है, ठीक उसी प्रकार नाग पर भी प्रभाव होता है। 

इसके लिए हमें अपने घर में ही शुद्ध घी से दीवार पर नाग बनाना चाहिए एवं फिर उनका विधि-विधान से पूजना करना चाहिए। इस प्रकार करने से नाग देवता प्रसन्न होने के साथ-साथ शुभ प्रभाव देते हैं व नाग दंश का भय भी नहीं रहता हैं। 

नागपंचमी पर अधिकांश परिवार वाले काले रंग या कोयले से नाग बनाते है एवं फिर पूजन करते है, लेकिन काला अशुभ होता है। अतः घी के ही नाग बनाकर पूजन करना चाहिए। 

कालसर्प योग वाले व्यक्ति इस दिन विधि-विधान से उज्जैन सिद्धवट पर या फिर त्र्यंबकेश्वर जाकर पूजन करवाने से अशुभ प्रभाव खत्म होकर शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है। 

हां, एक बात का अवश्य ध्यान रखें की कभी भी नाग आकृति वाली अंगूठी कदापि ना पहनें व जिसे भी इस प्रकार का दोष है वे गोमेद भी ना धारण करें। 

23 जुलाई के दिन भद्रा की समाप्ति समय 8 बजकर 13 मिनट 33 सेकंड पर हो रहा है। इसके बाद ही नाग पूजन कर कालसर्प दोष की शांति कराएं। इस दिन भी कालसर्प योग ही चल रहा है। इस समय जो भी बालक जन्म लेगा वो इस दोष से पीड़ित होगा। 

इस समयावधि में दो शुभ योग बनने पर भी आज जन्म लिए बालक पर शुभ प्रभाव नहीं डालेंगे। पहला शुभ योग- चंद्र से गुरु का केन्द्रस्थ होने पर बनने वाला गजकेसरी योग व शुक्र का केन्द्रस्थ स्वराशि वृषभ पर होने से मालव्य योग बनता है। लेकिन इस दिन कालसर्प दोष व अशुभ योग शनि-मंगल की युति भी है।

पूजन विधि -
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
नन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

- इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।

इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।

नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजन करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।

12 प्रकार का होता है कालसर्प दोष -
ज्योतिष के अनुसार, कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार का होता है, इसका निर्धारण जन्म कुंडली देखकर ही किया जा सकता है। प्रत्येक कालसर्प दोष के निवारण के लिए अलग-अलग उपाय हैं। यदि आप जानते हैं कि आपकी कुंडली में कौन का कालसर्प दोष है तो उसके अनुसार आप नागपंचमी के दिन उपाय कर सकते हैं। कालसर्प दोष के प्रकार व उनके उपाय इस प्रकार हैं-

1. अनन्त कालसर्प दोष -
- अनन्त कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी पर एकमुखी, आठमुखी अथवा नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
- यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, तो नागपंचमी पर रांगे (एक धातु) से बना सिक्का नदी में प्रवाहित करें।

2. लिकुकालसर्प दोष -
- कुलिक नामक कालसर्प दोष होने
पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें।
- चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास 

3.वासुकि कालसर्प दोष -
- वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।
- नागपंचमी पर लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

4. शंखपाल कालसर्प दोष -
- शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए 400 ग्राम साबूत बादाम बहते जल में प्रवाहित करें।
- नागपंचमी पर शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

5. पद्म कालसर्प दोष -
- पद्म कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें।
- जरूरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाएं।

6. महापद्म कालसर्प दोष -
- महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें।
- नागपंचमी पर गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।

7. तक्षक कालसर्प दोष -
- तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें।
- सफेद कपड़े और चावल का दान करें।

8. कर्कोटक कालसर्प दोष -
- कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।
- नागपंचमी पर शीशे के आठ टुकड़े नदी में प्रवाहित करें।


9. शंखचूड़ कालसर्प दोष -
- शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए नागपंचमी की रात सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।
- पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

10. घातक कालसर्प दोष -
- घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।
- चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

11.विषधर कालसर्प दोष -
- विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।
- नागपंचमी पर भगवान शिव के मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।

12. शेषनाग कालसर्प दोष -
- शेषनाग कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में थोड़े से बताशे व सफेद फूल बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
- नागपंचमी पर गरीबों को दूध व अन्य सफेद वस्तुओं का दान करें।

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